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यारो कहाँ तक और मोहब्बत निभाऊँ मैं दो मुझ को बद-द

यारो कहाँ तक और मोहब्बत निभाऊँ मैं 
दो मुझ को बद-दुआ' कि उसे भूल जाऊँ मैं 

दिल तो जला किया है वो शो'ला सा आदमी 
अब किस को छू के हाथ भी अपना जलाऊँ मैं 

सुनता हूँ अब किसी से वफ़ा कर रहा है वो 
ऐ ज़िंदगी ख़ुशी से कहीं मर न जाऊँ मैं..

©Imran Farooqui
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