।वो तेरा शहर-ये है मेरा गांव। ☝️ .🙏. ☝️ सोचता हूं तुझपे,लिखू भी तो क्या। वीरानों के जैसा है मंजर तेरा। होंगी तेरे शहर में इमारत बड़ी। इस गरीबी में भी दिल समंदर मेरा।। मुझे मायूसियों ने है घेरा तो क्या। है भले झोपड़ी में बसेरा तो क्या। तू भटकता उन्ही गलियों में दर बदर। ऐंहा नाचता है तेरे जैसा बंदर मेरा।। हम तुम्हारी नज़र में क्यूँ ना देसी सही। एंहा पीपल की हवा तुम्हारी ऐसी सही।। हम गले से लगे मिटा शिकवा गिला। वंहा पीठ पीछे जुबा रहता खंजर तेरा।। हम लागाये बगीचा तू बस गमले सजा। क्यूं ढूंढता है वंहा फिर गांव जैसा मज़ा।। है मेरे गांव की नदी का पानी मीठा बड़ा। तू पी भी ना सके है खारा समंदर तेरा।। ©Anand Singh Paliwal शहर वालो पढ़ना जरूर। गांव वालों गौर करना जरूर।