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तरे जैसा कोई मिला ही नहीं कैसे मिलता कहीं पे था ही

तरे जैसा कोई मिला ही नहीं
कैसे मिलता कहीं पे था ही नही 
तू जहा तक दिखाई देता हैं उसके आगे मैं
देखता ही नहीं
मुझपे होकर गुजर गई दुनिया
मे तेरी राह से हटा ही नहीं
पढ़ता रहता हु रात दिन उसको
उसने जो खत कभी लिखा ही नहीं
तारे बारे मे सोचने वाला
अपने बारे मे सोचता ही नही

©Hitesh Pathak Hitesh
  #retro