मै नारी अबला ! कैसे अपने आप को कह दूँ ? बस! थोड़ा-सा सुख मैने क्या चाह लिया, सब के लिए मै कामचोर ही हो गई, ? मै नारी अबला! हर क्षेत्र में मैं आत्म-निर्भर बनी, अपनी मेहनत से, कुछ देर थक कर क्या बैठी, मै तो सब के लिए आलसी ही हो गई? मै नारी अबला ! हर क्षेत्र में, कभी माँ, तो कभी पत्नी बनकर मुझसे ही बार-बार अग्नि-परीक्षा की लालसा होने लगी, बस! क्या यही जीवन हैं मेरा ? मै नारी अबला! कैसे समाज के ठेकेदारों ने मुझ पर आरोप लगा दिया? मैरे द्वारा किया गया त्याग-तप को ही गलत ठहरा दिया ? क्या मै बस भोग की वस्तु हूँ? मै नारी अबला! कैसे मैं खामोश हो जाऊ,, " मै शर्मो-हय्या की प्रति-मुर्ति क्या बन बैठी, मै तो स्वयं के लिए निर्बल हो गई? मै नारी अबला? कैसे मै सदियों से लगा कलंक अभी भी अपने मस्तक पर धारण करूँ ? मैने आवाज़ क्या उठाई , तो सारे पुरुषत्व को ठेस लग गई ? हाँ "हूँ मै अबला " बस! अपनी ममता के आगे, और अपने दाम्पत्य जीवन व घर-परीवार के आगे, तभी तो मैं माँ और पत्नी बनकर सारी बुराई का ठीकरा अपने ऊपर ले लेती हूँ | मैं नारी अबला! कैसे अपने आप को कह दूँ ? गीता शर्मा 'प्रणय' 30.05.2020 मै नारी अबला #कविता