गम न था मुझे उसके जाने का, मौसम न था उनके आने का, जख्म थे ढेरों इस दिल के आशियाने में, दम गया मेरा जब नम निगाहें जा टिकी कल के आईने में । रिश्तें-नातों ने बेआवाज तोड़ी प्रेम जंजीर, रास्ते कलरव पर दिल बधीर, हंसते हुए भी था मैं गंभीर, ढलते-उठते-संभलते बहूँ बनके नीर, नही अग्र मुझसे कोई थाम लूं गुजरती समीर । तजकर सकल मोह जन-मन से, जलाकर हौसले की लौ तन-तन में, रत्नाकर-सा चंचल जीवन कठिन कुछ नहीं मेरे लिए, आशा यही उठी सुहाने सवेरे लिए शिखर शीश झुकाता मेरे पथ पर, संयम-धैर्य-धीरज धरकर पथ निर्मित कर दूँ गहन वन में, गहन वन में, गहन वन में । ©purvarth #पवित्र_प्रेम