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कुछ बातें जो जरूरी हैं कहनी, जो कई बार कह चुकी हूँ

कुछ बातें जो जरूरी हैं कहनी, जो कई बार कह चुकी हूँ कई तरीकों से लेकिन हर बार लगता है कि इसे बार बार कहना पड़ेगा। (सोचिये, विचारिये पहले फिर कुछ कहिएगा) सबको हर समस्या का सरलीकरण चाहिए। माथा ना खपाना पड़े, अपना योगदान ना देना पड़े। बस छड़ी घूमे सब ठीक हो जाये। यही मानसिकता होती है जब स्त्रियों की दोयम दर्जे की स्थिति पे बात होती है सभी
"स्त्रियाँ स्त्रियों की दुश्मन होती हैं" कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं।
लेकिन वही लोग कभी सोचते हैं क्या कि उन्होंने पिछली बार कब किसी मर्द को टोका था किसी अभद्र भाषा या हरकत के लिए? आप खुद मौज मस्ती के लिए ऐसा करने के आदी हैं। और अगर टोका तो क्या उस इंसान से दोस्ती यारी खत्म की? नहीं। ऐसा बिल्कुल नहीं होता। दरअसल दोस्त बनाने के क्रम में आपने इसकी जरूरत भी नहीं समझी कि कोई कितना अच्छा इंसान है। वो आपकी कुलीग को कुछ बोले, पड़ोसन को, अजनबी को ठीक है, बस आपकी बीवी के लिए भाभी निकले, आपकी बिटिया को बेटी बोले। जब तक आँच घर तक ना आये, तब तक सब ठीक है। समस्या को खुद पैदा करेंगे लेकिन चाहेंगे कि समस्या पैदा करने वाले खुद को ना सुधारें, बस स्त्रियाँ ही रेनकोट पहनना सीख लें। जिस प्रकार आप इस सामंती मानसिकता से पीछा नहीं छुड़ा पा रहे क्योंकि समाज आपको इसी बात की शिक्षा और परवरिश देता है तो ऐसी ही शिक्षा और परवरिश उन्हें भी मिलती है। बल्कि आपसे कम जागरूक होने के मौके मिलते हैं, दिमाग पे पड़ी परतों को हटाने के अवसर कम मिलते हैं। उनकी दुनिया की परिधि एक घर से एक स्कूल और एक ससुराल और बहुत हुआ तो बेहद गहरी गहरी सांसें भरते हुए नौकरी के डेस्क से ही हो जाती है। जो कुछ स्त्रियाँ इससे निकलने की कोशिश करती हैं आप ही लोग उनकी राह और मुश्किल बनाते हैं। फिर भी इतनी भी ईमानदारी खुद के साथ नहीं कि कबूल सकें कि आप खुद समस्या के एक बहुत बड़े चक्र में छोटा सा सही मग़र योगदान देते हैं।

#YQBaba #YQdidi
कुछ बातें जो जरूरी हैं कहनी, जो कई बार कह चुकी हूँ कई तरीकों से लेकिन हर बार लगता है कि इसे बार बार कहना पड़ेगा। (सोचिये, विचारिये पहले फिर कुछ कहिएगा) सबको हर समस्या का सरलीकरण चाहिए। माथा ना खपाना पड़े, अपना योगदान ना देना पड़े। बस छड़ी घूमे सब ठीक हो जाये। यही मानसिकता होती है जब स्त्रियों की दोयम दर्जे की स्थिति पे बात होती है सभी
"स्त्रियाँ स्त्रियों की दुश्मन होती हैं" कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं।
लेकिन वही लोग कभी सोचते हैं क्या कि उन्होंने पिछली बार कब किसी मर्द को टोका था किसी अभद्र भाषा या हरकत के लिए? आप खुद मौज मस्ती के लिए ऐसा करने के आदी हैं। और अगर टोका तो क्या उस इंसान से दोस्ती यारी खत्म की? नहीं। ऐसा बिल्कुल नहीं होता। दरअसल दोस्त बनाने के क्रम में आपने इसकी जरूरत भी नहीं समझी कि कोई कितना अच्छा इंसान है। वो आपकी कुलीग को कुछ बोले, पड़ोसन को, अजनबी को ठीक है, बस आपकी बीवी के लिए भाभी निकले, आपकी बिटिया को बेटी बोले। जब तक आँच घर तक ना आये, तब तक सब ठीक है। समस्या को खुद पैदा करेंगे लेकिन चाहेंगे कि समस्या पैदा करने वाले खुद को ना सुधारें, बस स्त्रियाँ ही रेनकोट पहनना सीख लें। जिस प्रकार आप इस सामंती मानसिकता से पीछा नहीं छुड़ा पा रहे क्योंकि समाज आपको इसी बात की शिक्षा और परवरिश देता है तो ऐसी ही शिक्षा और परवरिश उन्हें भी मिलती है। बल्कि आपसे कम जागरूक होने के मौके मिलते हैं, दिमाग पे पड़ी परतों को हटाने के अवसर कम मिलते हैं। उनकी दुनिया की परिधि एक घर से एक स्कूल और एक ससुराल और बहुत हुआ तो बेहद गहरी गहरी सांसें भरते हुए नौकरी के डेस्क से ही हो जाती है। जो कुछ स्त्रियाँ इससे निकलने की कोशिश करती हैं आप ही लोग उनकी राह और मुश्किल बनाते हैं। फिर भी इतनी भी ईमानदारी खुद के साथ नहीं कि कबूल सकें कि आप खुद समस्या के एक बहुत बड़े चक्र में छोटा सा सही मग़र योगदान देते हैं।

#YQBaba #YQdidi
pratimatr9567

Vidhi

New Creator

सबको हर समस्या का सरलीकरण चाहिए। माथा ना खपाना पड़े, अपना योगदान ना देना पड़े। बस छड़ी घूमे सब ठीक हो जाये। यही मानसिकता होती है जब स्त्रियों की दोयम दर्जे की स्थिति पे बात होती है सभी "स्त्रियाँ स्त्रियों की दुश्मन होती हैं" कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं। लेकिन वही लोग कभी सोचते हैं क्या कि उन्होंने पिछली बार कब किसी मर्द को टोका था किसी अभद्र भाषा या हरकत के लिए? आप खुद मौज मस्ती के लिए ऐसा करने के आदी हैं। और अगर टोका तो क्या उस इंसान से दोस्ती यारी खत्म की? नहीं। ऐसा बिल्कुल नहीं होता। दरअसल दोस्त बनाने के क्रम में आपने इसकी जरूरत भी नहीं समझी कि कोई कितना अच्छा इंसान है। वो आपकी कुलीग को कुछ बोले, पड़ोसन को, अजनबी को ठीक है, बस आपकी बीवी के लिए भाभी निकले, आपकी बिटिया को बेटी बोले। जब तक आँच घर तक ना आये, तब तक सब ठीक है। समस्या को खुद पैदा करेंगे लेकिन चाहेंगे कि समस्या पैदा करने वाले खुद को ना सुधारें, बस स्त्रियाँ ही रेनकोट पहनना सीख लें। जिस प्रकार आप इस सामंती मानसिकता से पीछा नहीं छुड़ा पा रहे क्योंकि समाज आपको इसी बात की शिक्षा और परवरिश देता है तो ऐसी ही शिक्षा और परवरिश उन्हें भी मिलती है। बल्कि आपसे कम जागरूक होने के मौके मिलते हैं, दिमाग पे पड़ी परतों को हटाने के अवसर कम मिलते हैं। उनकी दुनिया की परिधि एक घर से एक स्कूल और एक ससुराल और बहुत हुआ तो बेहद गहरी गहरी सांसें भरते हुए नौकरी के डेस्क से ही हो जाती है। जो कुछ स्त्रियाँ इससे निकलने की कोशिश करती हैं आप ही लोग उनकी राह और मुश्किल बनाते हैं। फिर भी इतनी भी ईमानदारी खुद के साथ नहीं कि कबूल सकें कि आप खुद समस्या के एक बहुत बड़े चक्र में छोटा सा सही मग़र योगदान देते हैं। #yqbaba #yqdidi