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रोज़ सबेरे, घर से निकलते, रोज़गार की तलाश में... क

रोज़ सबेरे, 
घर से निकलते,
रोज़गार की तलाश में...

काम मिलेगा,
अनाज आएगा,
रहते इसी आश में..

पथ को तकते,
बूढ़े व बच्चे,
भूख और प्यास में..
               -शैलेन्द्र

©HINDI SAHITYA SAGAR
  #मजदूर