कब से अश्कों को छुपाने के बहाने ढूंढ रहे थे.... कहां रखे इन्हें छुपा कर ठिकाने ढूंढ रहे थे... अब तक हम , हर रिश्ते को थे ,आज़माये पर अब तक हमनें दर्द में, आंसू ना बहाएं.... टूटा जो दिल तो हम रो भी ना पाए कब से सावन के लिए हमने पलकें थीं बिछाए.... कोई देख ना ले , अश्क बहते हुए, इसलिए हमने अश्क, सावन संग बहाएं.... हमें हर घड़ी मुस्कुराते देख ज़ालिम ज़माना हमें रोता देखने को तरसते उन्हें इल्म नहीं ,हमारे ये अश्क सावन संग बरसते ..... कब से अश्कों को बहाने के बहाने ढूंढ रहे थे कहां छिप कर इन्हें बहाएं तो, सावन की काली ,घटाएं ढूंढ रहे थे।.... ___मधुबाला ✍️ #रोने#के#बहाने