वादा ए वफ़ा उसका ,एहतराम मेरा था, वस्ल में तबाह हो जाना,यही काम मेरा था। हर किसी को मयस्सर थी,इस दौर में रोशनी, सुर्ख अंधेरे से वाबस्ता,दिल ए नाकाम मेरा था। ताउम्र में ढूंढ़ता रहा, बहाना होश खोने का, भरे मयखाने में खाली,बस एक जाम मेरा था। ज़माने ने कब दिए, किसी के जख्मों को मरहम, मुझको जलाने वाला ,हरेक कलाम मेरा था। कुछ यूं रूह की खामोशी में ,`अल्फ़ाज़' खोता रहा, बिन जले खाक हो जाना,बस अंज़ाम मेरा था ।। #अल्फाज़_ए_कलम