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बैठे विसरा सब मुझे,किसे लगाऊँ फोन। फोन लगाऊँ भी उन

बैठे विसरा सब मुझे,किसे लगाऊँ फोन।
फोन लगाऊँ भी उन्हें,बदले उनकी टोन।।
बदले उनकी टोन,व्यस्तता का है रोना।
अब तो ख़ुद सँग बैठ,सरस हँसना अरु रोना।।
कह सतीश कविराय,अकड़ में हैं सब ऐंठे।
किसे लगाऊँ फोन,मुझे सब विसरा बैठे।।

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #कुण्डलिया_छंद