जो तुम मेरे कोल होतीं तो नज़रे मिलाकर कुछ बातें करता, बंदिशें बहुत हैं तुम पर ज़माने की पर आँखों ही आँखों में मुलाकातें करता, ज़ब भी देखता हूँ तुम्हें सामने से तो ये नज़रें झुक जाती हैं, ज़ब बेबाकी से निहारती हो तुम फिर आँखें क्यों हया में डूब जाती हैं,? सोंचता बहुत है मेरा दिल कोई शर्मीली तस्वीर बनाने को, मेरे होंठ सुर्ख हो जाते हैं मुन्तज़िर सा बन जाता हूँ मोहब्बत का रंग लगाने को,... °°°@nitin_arya_muntzir www.muntzirshayri.com #muntzir shayri