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अकेले आदमी ख़ुद को पाता है ऐसे मानो मक्के के खेत प

अकेले आदमी ख़ुद को पाता है ऐसे
मानो मक्के के खेत पर गड़ी हुई बांस और मटके पर कालिख से पुती हुई सर , फटा हुआ कुर्ता और अगल बगल खेत खलिहान.
जिसमे हर मौसम पर बदल दिए जाते है बीज और उन्हें ऐन वक्त पर काट लिया जाता है , खेत और पुतले इनके बीच एक चीज़ है जो कोई नही काट सकता वो है सिर्फ़ तन्हाई..

©काफ़िर_rk #Nojoto #Hindi #Poetry #Life #alone #Nature #Zindagi
अकेले आदमी ख़ुद को पाता है ऐसे
मानो मक्के के खेत पर गड़ी हुई बांस और मटके पर कालिख से पुती हुई सर , फटा हुआ कुर्ता और अगल बगल खेत खलिहान.
जिसमे हर मौसम पर बदल दिए जाते है बीज और उन्हें ऐन वक्त पर काट लिया जाता है , खेत और पुतले इनके बीच एक चीज़ है जो कोई नही काट सकता वो है सिर्फ़ तन्हाई..

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