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खुद के बनाए वसूलों पे ताउम्र चलता रहा मैं वक्त और

खुद के बनाए वसूलों पे ताउम्र चलता रहा
मैं वक्त और वक्त मेरे साथ ढलता रहा 

चाहता तो मैं भी अंधेरों में भटक जाता 
आदत रौशनी की थी और मैं जलता रहा 

मेरे मकां में छत भी है मेरी आदतों सी
एक मैं हीं था जो उस छत को समझता रहा

कुछ पौध हमने भी लगाए थे खुदा कि बागवानी में
आंधियाँ आतीं रहीं,और बागवां लड़ता रहा 

गर्मियां आईं तो भौरों ने ठिकाना बदला
फूल कतरा कतरा कि चाह मे जलता रहा

©samandar Speaks
  #arabianhorse  Khushi Tiwari Radhey Ray Satyaprem Upadhyay Siddharth singh Samima Khatun