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(3) क्यूं करें शिकवा, शिकायत, क्यूं हो गिला कोई?

(3)

क्यूं करें शिकवा, शिकायत, क्यूं हो गिला कोई?
अपनी चाहत है, जी! चाहत में बगावत तो नहीं।।

कभी अपना, कभी हमको पराया करतें हैं।
बे-जुबां इश्क है, यह कोई शियासत तो नहीं।।
     
                             संवेदिता

©Samvedita
  #मुखौटा (३)
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