जो तुम्हारा हो न पाया क्यों कहो उसके हुए तुम? अश्क़ बन आँखों से अपनी क्यों सदा रिसते रहे तुम? क्यों गए गलियों में उसकी लाँघकर असमंजसों को? और लेकर दर्द दिल का कोसते हो वक़्त को तुम, क्या उचित है वक़्त पर यूँ दोष सारे रोज़ मढ़ना! पी गए जब तुम हलाहल मौत से क्यों डर रहे हो? लौट आएगा न वो अब, राह जिसकी तक रहे हो... बात जो भी है बता दो खोल दो सब राज़ दिल के अब छुपाकर क्या करोगे हो सका कुछ भी न हासिल ख़ुद को यूँ खोते गए तुम जो तुम्हारा हो न पाया क्यों कहो उसके हुए तुम? #क्यों #वक़्त #तुम्हारा #उचित #ghumnamgautam