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मानव शरीर उस मंदिर के समान होता है जिसके एक हिस्से

मानव शरीर उस मंदिर के समान होता है जिसके एक हिस्से में स्वयं ईश्वर का एक अंश विद्यमान होता है परमात्मा के इस वास्को जीव आत्मा से जोड़ा गया है उसी शक्ति से मानव अंग की रसीद रहकर विविन अनुभूतियां प्राप्त करता है सामान्य दशा में यह जीवन व्यक्ति को जीवित रखने के साथ मस्ती को बल प्रदान करने विभिन्न प्रकार के सांसारिक अनुभव से चित्र कराती रहती है व्यक्ति जीवन प्रयाग इसी के सहारे आगे बढ़ता रहता है ईश्वर का अंश होने के कारण इसे जीवात्मा में वह आ समिति शक्ति भी सीमित रहती है जिससे मानव असंभव को भी संभव कर सकता है किंतु उसके लिए अतिरिक्त स्तर पर जीवात्मा के उस अंश के अनुभूति का अनुभव करना पड़ता है इसे अनुभव की यात्रा आसान नहीं है इस यात्रा के गंतव्य तक पहुंचने के लिए आर्थिक प्रयास करना पड़ता है बल्कि वैसे जैसे व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से जीवन में बड़ी-बड़ी परीक्षाओं को तृण करता है बड़ी परीक्षाओं से पार पाने के लिए उपरांत जो प्रबल आनंद प्राप्त होता है उससे कहीं अधिक आनंद की अनुभूति जीवात्मा की उपस्थिति के अनुभव से होती है

©Ek villain #वास्तविक आनंद जीव आत्मा में ही है

#chains
मानव शरीर उस मंदिर के समान होता है जिसके एक हिस्से में स्वयं ईश्वर का एक अंश विद्यमान होता है परमात्मा के इस वास्को जीव आत्मा से जोड़ा गया है उसी शक्ति से मानव अंग की रसीद रहकर विविन अनुभूतियां प्राप्त करता है सामान्य दशा में यह जीवन व्यक्ति को जीवित रखने के साथ मस्ती को बल प्रदान करने विभिन्न प्रकार के सांसारिक अनुभव से चित्र कराती रहती है व्यक्ति जीवन प्रयाग इसी के सहारे आगे बढ़ता रहता है ईश्वर का अंश होने के कारण इसे जीवात्मा में वह आ समिति शक्ति भी सीमित रहती है जिससे मानव असंभव को भी संभव कर सकता है किंतु उसके लिए अतिरिक्त स्तर पर जीवात्मा के उस अंश के अनुभूति का अनुभव करना पड़ता है इसे अनुभव की यात्रा आसान नहीं है इस यात्रा के गंतव्य तक पहुंचने के लिए आर्थिक प्रयास करना पड़ता है बल्कि वैसे जैसे व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से जीवन में बड़ी-बड़ी परीक्षाओं को तृण करता है बड़ी परीक्षाओं से पार पाने के लिए उपरांत जो प्रबल आनंद प्राप्त होता है उससे कहीं अधिक आनंद की अनुभूति जीवात्मा की उपस्थिति के अनुभव से होती है

©Ek villain #वास्तविक आनंद जीव आत्मा में ही है

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Ek villain

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