जिस तरह मैं पढ़ता हूं किताबो को, क्या किताबें भी मुझे पढ़ती है वैसे ? अगर हां, तो हर कोई पढ़ता होगा मुझे, मेरे मन के भाव, प्रेम, क्रोध, निराशाओं को, लेकिन कोई कहता क्यू नहीं मुझसे, शायद कहना ना चाहते हो ? या शायद नहीं पढ़ पाते है लोग मुझे ? मैं ही केवल किताबो को पढ़ पाता हूं, किताबे नहीं पढ़ पाती मुझे...... ©Ajay Chaurasiya किताबो का पढ़ना