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मर्यादा और विश्वास की रेखा के बाहर झूठ और फरेब की

मर्यादा और विश्वास की रेखा के बाहर झूठ और फरेब की दुनिया अक्सर सुंदर दिखती है।परंतु जब उसके अंदर का अंधेरा मन को खाने लगता है तो मन वापस उसी बंधन में लौटने को बैचेन हो जाता है जिसमे उसका दम घुटता था।।अब मन को ये याद थोड़े ना रहता है कि जिससे ये बंधना जुड़ा था और मर्यादा बांधी गई थी,उसके पास भी एक मन होता है जो हमेशा उस शख्स के जाने के बाद उस टूटी लकीर को देखता रहता है।तब तक जब तक कि वो पत्थर न हो जाए।।

फिर एक दौर शुरू होता है,
पत्थर पे सर पटकने का,पर इस बार दिल है कि मानता नहीं।

©निर्भय चौहान
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