जब हम हक़ीक़त की दुनियाँ से दूर हो ख़्वाहिशों की दुनियाँ में खो कर ढ़लते चाँद और सितारों की चादर तले ख़्वाबों के आसमां पर रोज ही हम झूला झूला करते हैं। झूठे ही सही ख़्वाब हम भी देखा करते हैं हम भी बुना करते हैं अपना ख़्वाबों का आशियां, हक़ीक़त ना उम्मीदी की तोड़ दे तो क्या हुआ। फिर उगते सूरज की नये दिन के साथ सफल होने की उम्मीद हमारे दिल में नई ख़्वाहिशें वो पहली नज़र वाला प्यार फ़िर एक और दफ़ा ख़ुद से होने पर हमें मजबूर कर जाती। ♥️ Challenge-487 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ इस विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।