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जुल्म से लबरेज, वफादार मिल गए मेरे वतन में हाकिम,

जुल्म से लबरेज, वफादार मिल गए
मेरे वतन में हाकिम, बेकार मिल गए

मैं निकला था देखने, धूप कि रौशनी
बदले मे अंधेरों के,तलबगार मिल गए 

मैं निकला था थोड़ी सी मदद मांगने
मदद न मिली मशवरे हजार मिल गए 

खाली झोपड़ियां,थी जुगनू कि ताख में
महलों के जिम्मे तारे तमाम मिल गए
राजीव

©samandar Speaks
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