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कौरवों ने बिछाया कैसा ये जाल है। फिर से आहत हुई है

कौरवों ने बिछाया कैसा ये जाल है।
फिर से आहत हुई है आत्मा मेरी
अभिमन्यु के जैसे तड़प तड़प के रोया हूँ
ऐसा ये मेरा हाल है।
क्यों घमंड करता है जयद्रथ
जो तू मालामाल है।
अकेला नहीं हूँ मैं
कृष्ण का सखा हूँ मैं
चक्र वो सुदर्शन तेरा ही काल है।

©ऋतुराज पपनै #कौरव_हनन
#सुदर्शन_चक्र
कौरवों ने बिछाया कैसा ये जाल है।
फिर से आहत हुई है आत्मा मेरी
अभिमन्यु के जैसे तड़प तड़प के रोया हूँ
ऐसा ये मेरा हाल है।
क्यों घमंड करता है जयद्रथ
जो तू मालामाल है।
अकेला नहीं हूँ मैं
कृष्ण का सखा हूँ मैं
चक्र वो सुदर्शन तेरा ही काल है।

©ऋतुराज पपनै #कौरव_हनन
#सुदर्शन_चक्र