छोडकर आयना मेरी नीगाहो मे खो शकती हो क्या ? सबको भुलकर बस तुम मेरी हो शकती हो क्या ? नीगाहो से नीगाहो तक की बाते तो होती रहेगी. पर मेरे हाथो को अपने हाथो मे पीरोह शकती हो क्या ? सपनो मे तो साथ साथ बहुत चले है हम थोडा सा मेरी बाहो मे अपना सर रखकर सो शकती हो क्या ? पत्ता है! वक्त ने कीया है तुम्हारी आंखो को कढीन पर मुजे खोने के खयाल मात्र से थोडा सा रो शकती हो क्या ? क्या हो रहा है ? क्या होने वाला है ? कुछ पत्ता नही दील पछता ईतना ही, क्या तुम सिर्फ हो शकती हो क्या ? ©RAVIDAN GADHVI आपके चाहक होंगे हजार, आपकी चाहत होंगी कई पर हमारी चाहत कहो या आदत, सब आपसे ही है जुडी Writes By RAVIDAN GADHVI