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कौन हूं मैं? खोजती रहती हूं खुद को निरंतर, कौन हूं

कौन हूं मैं?
खोजती रहती हूं खुद को निरंतर,
कौन हूं मैं?
पाप करता है जो क्या सिर्फ वो ही है पापी,
कार्य करता घृणित है,
या वो जो बुरे कार्य होते देखकर भी चुप है।
अग्नि के ताप से ठिठुरती शाम काटी,
ह्रदय भी सर्द है इसको जरा माचिस दिखाओ।
सो गए हो अगर तो जाग जाओ वक्त पर तुम।
चिता सी जल रही है देह को थोड़ा और घी दो
कहो कुछ भी नही होठों और थोड़ा और सीं दो
क्यों मणिकर्णिका घाट यूं रोशन हुआ है,
है लगता है मौत का मेला लगा है।
अरे आज तू  क्यों आया अकेला
कहां है तेरा गुरुर कहां तेरा अपनो का रेला,
लगता कोई साथ न आया।
वो भी छूटा जो तूने पाप से कमाया।
जन्म और मृत्यु का सफर है,
कहां से तू कहां से मैं हूं?
कौन हूं मैं?
खोजती रहती खुद को निरंतर.........।।

©meri_lekhni,_12
  kaun hoon mai....#poetry
#kavita #kavisammelan

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