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( मेरी ज़िन्दगी बस एक कलम की दौड़ बन कर रह गयी है

(  मेरी ज़िन्दगी बस एक कलम 
की दौड़ बन कर रह गयी है  )

गई रोकते हुए दौड़ जो,
रूठी हुई राह थी मेरी;
मेरी होती है कुछ तलाश,
नहीं होता उन्हें मिलने का आशिकी!

आते थे सब कोई ना कोई,
लौटे चले जाते होते;
मुझे ना जाना उनके लिए,
गिरा देना होता मिट्टी पे बसोते!

उठी थी मैं एक नए रास्ते से,
मुझे अपने जीवन की दौड़ निभाने के;
मुझे खौफ की राह पर आकर,
वो आग भी गई जो मेरे दर्द को जलाती थी!

मेरी आँखों में आज दुनिया का दर्द है,
दुखी मन है उन सभी को देखती;
मुझे अपना कलम लगाने के लिए,
कहता है की कुछ नई अवतार तोड़ो!

©KhaultiSyahi
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