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गीत :- परिधानों को समझ रहे हैं , कुछ लोग यहाँ आभू

गीत :-

परिधानों को समझ रहे हैं , कुछ लोग यहाँ आभूषण ।
जिनको देख कहे अब कुछ तो , अब ये तो हुए कुपोषण ।।
परिधानों को समझ रहें हैं ....

उनके घटते परिधानों को , देख सदा हूँ चुप होता ।
मन ही मन चिंतन करता अब , वस्त्र हरण दोष न होता ।।
अजब-अजब सी कृतियाँ करके ,  पहनें जैसे आभूषण ।
परिधानों को समझ रहे हैं ......

लाज शर्म की बातें करना , व्यर्थ हुआ है इस युग में ।
मैं हूँ सुंदर मैं हूँ सुंदर , होड़ लगी अब तो जग में ।।
सच कहने वाले अब सारे , है उनके लिए विभीषण ।
परिधानों को समझ रहें हैं....

आज समाज दिशा है बदली , या बदले हैं अब हम ही ।
शायद खोटी शिक्षा अपनी , जो आज बुरे है हम ही ।।
मान लिया हमने गलती यह , देकर इनको अब भाषण ।
परिधानों को समझ रहें हैं ...

परिधानों को समझ रहें हैं , कुछ लोग यहाँ आभूषण ।
जिनको देख कहे अब कुछ तो , अब ये तो हुए कुपोषण ।।

२१/११/२०२३        -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-

परिधानों को समझ रहे हैं , कुछ लोग यहाँ आभूषण ।
जिनको देख कहे अब कुछ तो , अब ये तो हुए कुपोषण ।।
परिधानों को समझ रहें हैं ....

उनके घटते परिधानों को , देख सदा हूँ चुप होता ।
मन ही मन चिंतन करता अब , वस्त्र हरण दोष न होता ।।
गीत :-

परिधानों को समझ रहे हैं , कुछ लोग यहाँ आभूषण ।
जिनको देख कहे अब कुछ तो , अब ये तो हुए कुपोषण ।।
परिधानों को समझ रहें हैं ....

उनके घटते परिधानों को , देख सदा हूँ चुप होता ।
मन ही मन चिंतन करता अब , वस्त्र हरण दोष न होता ।।
अजब-अजब सी कृतियाँ करके ,  पहनें जैसे आभूषण ।
परिधानों को समझ रहे हैं ......

लाज शर्म की बातें करना , व्यर्थ हुआ है इस युग में ।
मैं हूँ सुंदर मैं हूँ सुंदर , होड़ लगी अब तो जग में ।।
सच कहने वाले अब सारे , है उनके लिए विभीषण ।
परिधानों को समझ रहें हैं....

आज समाज दिशा है बदली , या बदले हैं अब हम ही ।
शायद खोटी शिक्षा अपनी , जो आज बुरे है हम ही ।।
मान लिया हमने गलती यह , देकर इनको अब भाषण ।
परिधानों को समझ रहें हैं ...

परिधानों को समझ रहें हैं , कुछ लोग यहाँ आभूषण ।
जिनको देख कहे अब कुछ तो , अब ये तो हुए कुपोषण ।।

२१/११/२०२३        -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-

परिधानों को समझ रहे हैं , कुछ लोग यहाँ आभूषण ।
जिनको देख कहे अब कुछ तो , अब ये तो हुए कुपोषण ।।
परिधानों को समझ रहें हैं ....

उनके घटते परिधानों को , देख सदा हूँ चुप होता ।
मन ही मन चिंतन करता अब , वस्त्र हरण दोष न होता ।।

गीत :- परिधानों को समझ रहे हैं , कुछ लोग यहाँ आभूषण । जिनको देख कहे अब कुछ तो , अब ये तो हुए कुपोषण ।। परिधानों को समझ रहें हैं .... उनके घटते परिधानों को , देख सदा हूँ चुप होता । मन ही मन चिंतन करता अब , वस्त्र हरण दोष न होता ।। #कविता