अब फ़िर से हम कोईं सवाल तुझसे नहीं पूछेंगे, कि, पतझड़ में सावन का इंतज़ार नहीं देखेंगे गर परिंदे शाखें बदलते हैं, तो बदल जाने दे, कि, फ़िर से इंतज़ार में पुराने इतवार नहीं देखेंगे कई दफ़ा देखा हमने पन्ने पलटकर किताबों की, कि, फ़िर से नई कहानी के अब किरदार नहीं देखेंगे माना कि सितमगर हैं ज़माना, तू बैठ तो सही, कि, तेरी आँखों के अलावे हम जिस्म नहीं देखेंगे! prem_nirala_ अब फ़िर से हम कोईं सवाल तुझसे नहीं पूछेंगे, कि, पतझड़ में सावन का इंतज़ार नहीं देखेंगे गर परिंदे शाखें बदलते हैं, तो बदल जाने दे, कि, फ़िर से इंतज़ार में पुराने इतवार नहीं देखेंगे कई दफ़ा देखा हमने पन्ने पलटकर किताबों की, कि, फ़िर से नई कहानी के अब किरदार नहीं देखेंगे