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शाख से कुछ पत्ते झड़ते है जिंदगी के कुछ लम्हे गुजर

शाख से कुछ पत्ते झड़ते है
जिंदगी के कुछ लम्हे गुजरते हैं 

कहीं किसी की मोत का शोक है
कहीं किसी के जन्मोत्सव के गीत बजते हैं

जिंदगी एक मेला है
सुख -दुख मौसम कि तरह बदलते हैं

एक मुसाफिरखाना है
मुसाफिरों कि तरह कमरे बदलते हैं

पतझड़ के बाद बसंत को आना है
लम्हा लम्हा कर वक्त को गुजरते जाना है।

©Amit Sir KUMAR
  #Parchhai शाख से कुछ पत्ते झड़ते हैं...

#Parchhai शाख से कुछ पत्ते झड़ते हैं... #कविता

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