कहीं 'नफ़रत' की एक आग जल रहीं है कहीं पर जलाया जा रहा 'प्रेम' को है रिश्ते 'नाज़ुक' से इस वक़्त के दौर में है कहीं दफ़नाया जा रहा इंसानियत को है यूँही 'आचार-विचार' बदल रहे आज है 'माँ-बाप' बुरे सभी को लग रहे आज हैं बनाया जो 'आशियाना' मिलजुलकर है बिखर रहा आज वो 'वक़्त' की रेत सा है ♥️ Challenge-677 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।