ना उड़ता हूं गगन में ना उड़ने की चाह है मेरी । पता है यही मंजिल यही राह है मेरी ।। चाह कर भी ना उड़ पाऊंगा ये पता है मुझे । सायद दी है पिछले कर्मो की सजा है मुझे ।। फिर सोचता हूं वो दिन भी आएगा हां कोई तो मुझे इस पिंजरे से आजाद कराएगा । पर ना आया अगर कोई तो क्या मै इस पिंजरे में ही रह जाऊंगा ? कुछ नहीं कोई नहीं जो ना आया अगर कोई सोच लूंगा यही सजा थी मेरी। ना उड़ता हूं गगन में ना उड़ने की चाह है मेरी ।। यही मंजिल यही राह है मेरी #पिंजरे_का_पंछी