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वो हर बार मना कर जाती है, फिर भी मुझसे मिलने आती ह

वो हर बार मना कर जाती है, फिर भी मुझसे मिलने आती है।
मेरे उदास होने पर वो, मुझे अपने हाथो से खाना खिलाती है।
थोड़ी पागल थोड़ी कार्टून सी है वो, 
पर अपने हर वादे को बड़ी संजीदगी से निभाती है।
रूप ना पूछो रंग न पूछो उसका, 
मेरे अंधेरे जीवन में वो चिराग की भांति है।
हर रात मेरे ख्वाबों में आ, मेरे बालो को सहलाती है,
सुनी सी थी जिंदगी मेरी, पर अब हर पल वो मुझे हसाती है।
मेरे इस सुने चेहरे पर, उसकी एक हसी ही रंग बिखराती है।
बाते उसकी खत्म न होती, ना जाने कहा से किस्से लाती है।
मन करता है सुनता रहुं, उसकी हर बात जो वो मुझे सुनाती है।
कभी हंसाए कभी रुलाए, कभी वो मुझे सताती है।
मुस्कान बड़ी प्यारी है उसकी, पर अपनी आंखो से वो मुझे डराती है।
महक आज भी याद है मुझे उसकी, वो मेरे हर दिन को महकाती है।
मेरी हर कविता का आरंभ है उससे, और बस उसी पर खत्म हो जाती है।

©Nick's_Thoughts
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