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★ हाँ-हाँ हममें रहता है गाँव हमारा ★-((यादें)) 💜�

★ हाँ-हाँ हममें रहता है गाँव हमारा ★-((यादें))
💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜

*बिताया है हम सबने बचपन जहां पर, ये प्यारा सा गांव- ये नहर का किनारा!!*
हैं  सभी गांव  जग में  जहां  लोग रहते,    यहां   हममें  रहता है   गांव  हमारा!!

1- वो चप्पल के पहिए में लकड़ी लगाकर-
    बहुत   दूर   जाते   थे   टायर   चलाकर;
     गुजारे  बहुत दिन   थे   कैंची  पे   लटके-
     यही सब  तोथे  अपने   साधन  सफर के;
कोई  है  जो ऐसा   वो सबको बताए;  जो सीखा हो गद्दी बिना ही सहारा.......

2- वो बारिश के मौसम में खुलकर नहाना-
   बने   बुलबुलों   से ही   मौसम   बताना;
    तब  कुल्फी  वही   एक ही तो   पता थी-
    वो  फीकी सी आइस ओलों  की  खाना;
चलती  थी नावें- थे  अपने  जहाज;  जरा देर का, पर थातो बेड़ा हमारा.........

3- वो शीशी से पट्टी का घिसकर चमकना-
     वो पट्टी पर  गीली  खड़िया से  लिखना;
     के   धरती पे   बैठे  थे   बोरी   बिछाकर-
     के  छटवीं  में   सीखे थे   अंग्रेजी  अक्षर;
कुटाई बिना  काम चलता कहाँ था;  जरा सा ही पढ़कर था होता गुजारा........

4- वो गिल्ली- डंडा, वो कंचे  औ  कुश्ती-
    लपो डांडिया   थी   बड़ी  धींगा मुश्ती;
    कहाँ हैं  पतंगें, कहाँ  लड़-झगड़  अब-
    कहाँ रह गई है  वो उतनी  अकड़ अब;
तड़ीमार,  छुप्पम-छाई  औ  खो-खो;  यही खेल थे तब इन्हीं ने निखारा......

5- बातें कहे कितनी-क्या-कैसे मल्हौसी-
    लगती   थी   लंदन के  जैसे  मल्हौसी; 
   वो  भोला  के भल्ले, वो पेड़े - समोसे-
   कहाँ   मिल सकेंगे  अब  होटल में ऐसे;
बेरों के मौसम, वो कैथा, वो जामुन;  कहाँ अब  मिलेंगी वो  अपनी बहारा.....
.
written by ~ Adarsh Dwivedi   { मोहित तिवारी भैया की प्रेरणा से} mera Ganv, meri Yaden
★ हाँ-हाँ हममें रहता है गाँव हमारा ★-((यादें))
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*बिताया है हम सबने बचपन जहां पर, ये प्यारा सा गांव- ये नहर का किनारा!!*
हैं  सभी गांव  जग में  जहां  लोग रहते,    यहां   हममें  रहता है   गांव  हमारा!!

1- वो चप्पल के पहिए में लकड़ी लगाकर-
    बहुत   दूर   जाते   थे   टायर   चलाकर;
     गुजारे  बहुत दिन   थे   कैंची  पे   लटके-
     यही सब  तोथे  अपने   साधन  सफर के;
कोई  है  जो ऐसा   वो सबको बताए;  जो सीखा हो गद्दी बिना ही सहारा.......

2- वो बारिश के मौसम में खुलकर नहाना-
   बने   बुलबुलों   से ही   मौसम   बताना;
    तब  कुल्फी  वही   एक ही तो   पता थी-
    वो  फीकी सी आइस ओलों  की  खाना;
चलती  थी नावें- थे  अपने  जहाज;  जरा देर का, पर थातो बेड़ा हमारा.........

3- वो शीशी से पट्टी का घिसकर चमकना-
     वो पट्टी पर  गीली  खड़िया से  लिखना;
     के   धरती पे   बैठे  थे   बोरी   बिछाकर-
     के  छटवीं  में   सीखे थे   अंग्रेजी  अक्षर;
कुटाई बिना  काम चलता कहाँ था;  जरा सा ही पढ़कर था होता गुजारा........

4- वो गिल्ली- डंडा, वो कंचे  औ  कुश्ती-
    लपो डांडिया   थी   बड़ी  धींगा मुश्ती;
    कहाँ हैं  पतंगें, कहाँ  लड़-झगड़  अब-
    कहाँ रह गई है  वो उतनी  अकड़ अब;
तड़ीमार,  छुप्पम-छाई  औ  खो-खो;  यही खेल थे तब इन्हीं ने निखारा......

5- बातें कहे कितनी-क्या-कैसे मल्हौसी-
    लगती   थी   लंदन के  जैसे  मल्हौसी; 
   वो  भोला  के भल्ले, वो पेड़े - समोसे-
   कहाँ   मिल सकेंगे  अब  होटल में ऐसे;
बेरों के मौसम, वो कैथा, वो जामुन;  कहाँ अब  मिलेंगी वो  अपनी बहारा.....
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written by ~ Adarsh Dwivedi   { मोहित तिवारी भैया की प्रेरणा से} mera Ganv, meri Yaden