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तुम्हें यकीं कैसे दिलाता, तुम्हें कितना चाहता हूं

तुम्हें यकीं कैसे दिलाता, तुम्हें कितना चाहता हूं , 
मर के शहर में तुम्हारे, ठहर जाना चाहता हूं। 

आखिरी ख्वाहिश है, जलकर खाक हो जाने की , 
राख बनकर इन वादियों में बिखर जाना चाहता हूं।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
  #शहर