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रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए रोज रोज मिटते ह

रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए रोज रोज मिटते हैं, फिर भी खाक ना हुए,
दरिया बह रहे लहू के पर नापाक ना हुए,
क्या बिगाड़ लेंगे बाजुए कातिल मेरा,
हौसले जल रहे हैं पर राख ना हुए।। रोज रोज मिटते हैं,,
रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए रोज रोज मिटते हैं, फिर भी खाक ना हुए,
दरिया बह रहे लहू के पर नापाक ना हुए,
क्या बिगाड़ लेंगे बाजुए कातिल मेरा,
हौसले जल रहे हैं पर राख ना हुए।। रोज रोज मिटते हैं,,

रोज रोज मिटते हैं,, #शायरी