आज दो अक्टूबर है डरकर कपाट खोल दूं। हां खाकी निक्कर थी टोपी थी और थी लाठियाँ, कुछ लोग थे दूसरी तरफ हां आधी दाड़ी थी टोपी थी और लम्बे कुर्ते के साथ छोटी थी पजामियां। तू डरपोक कवि है सीधा बोल थे आर एस एस के लोग और कुछ लोग थे दूसरी तरफ हां थे वो मुस्लमान थी मियांओं की टोलियां।