विद्वानों ने त्वमेव माता को सबसे पहले स्थान दिया है उसके बाद पिता बंधु सखा विद्या और धन को धर्म ग्रंथों में पुत्र कुपुत्र हो सकता है माता कुमाता नहीं हो सकती के माध्यम से ऋषि यों ने माता की महिमा बढ़ाई है माता से नाराज होकर एक युवक किसी आश्रम में पहुंचा गुरु से मां द्वारा ब्रह्म मुहूर्त में जागने पढ़ने लिखने के लिए बाध्य करने की शिकायत की सारी बात सुनने के बाद गुरु ने अपने शिष्य बना लिया और उसके पेट पर ढाई किलो वजन का पत्थर बांध दिया तथा आश्रम में सेवा कार्य करने के लिए कहा कुछ ही पल बाद सचिन ने कहा कि काम करने में उसे भारी असुविधा हो रही है शीशे की इस विशेषता पर गुरु ने कहा जरा सोचो कि हर माह गर्भ में लगभग इतना ही वजन के शिशु को धारण कर प्रशासन से काम करती है ना वह बोलती है ना थकती है 9 माह का गर्भ में धारण कर उसे अपने रक्त मंजन से पोषित भी करती है ©Ek villain #माता की महिमा अपरंपार है #Youme