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तेरी आँखों से ही जागे सोये हम कब तक आखिर कब तक आखि

तेरी आँखों से ही
जागे सोये हम
कब तक आखिर
कब तक आखिर तेरे 
घाम को रोये हम

वक्त का मरहम
ज़ख्मों को भर देता हैं
शीशे को भी यह
पत्थर कर देता हैं
रात में तुझ को पाये
दिन मे खोये हम
तेरी आँखों से ही
जागे सोये हम

हर आहट पर लगता
हैं तू आया हैं
धूप हैं मेरे पीछे
आगे साया हैं
खुद अपनी ही लाश को
कब तक ढोये हम
तेरी आँखों से ही
जागे सोये हम

"निदा फाज़ली"

©अर्हंत
  कब तक.......

कब तक....... #Shayari

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