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युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ । बच्चों ब

युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने लगी , कर लो सभी प्रबंध ।।२

सुबह-शाम की धूप का , ले लो सब आनंद ।
पूस-माघ की ठण्ड है , कर लो खिड़की बंद ।।३

करता विनय किसान है , खूब पड़े अब ठण्ड़ ।
देखो गर्मी की फसल , दे जाती है दण्ड़ ।।४

सर्दी आयी झूम के , लियो रजाई तान ।
अन्दर-अन्दर आप भी , करिये प्रभु का ध्यान ।।५

ठण्ड़ी के दिन में यहाँ , बनते लोग महान ।
हफ्ता भी जाए चला , करें नहीं स्नान ।।६

कहते मन की बात को , प्रखर हृदय को थाम ।
आज सजन के नाम से , बीती ठण्ड़ी शाम ।।७

अम्मा-अम्मा बोलता , बालक वह नादान ।
अम्मा बातों में लगी , दिए नहीं अब ध्यान ।।८

अम्मा मुझको चाहिए , ऊपर वाला चाँद ।
बेटा पहले भर यहाँ , तू अपना यह नाँद ।।९

मुझको जाना ही नही , अम्मा से अब दूर ।
क्या करना पढ़कर यहाँ , मैं अच्छा लंगूर ।।१०

आओ खेलें हम यहाँ , लुका छुपी का खेल ।
मन्नू की तो आ रही , देखो छुक-छुक रेल ।।११

बापू आज पतंग मैं , दूँगा सबकी काट ।
बहुत लगे हैं बोलने , यह अच्छी है डाट ।।१२

बापू तेरा हाथ मैं , चलूँ पकड़कर संग ।
तू ही आगे भागता , दुनिया है बेरंग ।।१३

गैरो की आने लगे , जब अपनों को याद ।
ऐसा ही होगा सदा , जब ऐसी औलाद ।।१४

मातु-पिता को गैर जब , मान रही औलाद ।
फिर तो पश्चाताप का ,  चखना ही है स्वाद ।।१५

कुछ भी कह लो बात तुम , बच्चे दें ना ध्यान ।
मातु-पिता के अंत में , बस रह जाते प्रान ।।१६

चका-चौंध में हो गये , टुकड़े अब पैंतीस ।
मातु-पिता की मानती , निकली होती खीस ।।१७

चाँद हुआ है मध्य में , देख रहा है चकोर ।
पल-पल आहें भर रहा , देख उसी की ओर ।।१८

१६/११/२०२२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने लगी , कर लो सभी प्रबंध ।।२

सुबह-शाम की धूप का , ले लो सब आनंद ।
पूस-माघ की ठण्ड है , कर लो खिड़की बंद ।।३
युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने लगी , कर लो सभी प्रबंध ।।२

सुबह-शाम की धूप का , ले लो सब आनंद ।
पूस-माघ की ठण्ड है , कर लो खिड़की बंद ।।३

करता विनय किसान है , खूब पड़े अब ठण्ड़ ।
देखो गर्मी की फसल , दे जाती है दण्ड़ ।।४

सर्दी आयी झूम के , लियो रजाई तान ।
अन्दर-अन्दर आप भी , करिये प्रभु का ध्यान ।।५

ठण्ड़ी के दिन में यहाँ , बनते लोग महान ।
हफ्ता भी जाए चला , करें नहीं स्नान ।।६

कहते मन की बात को , प्रखर हृदय को थाम ।
आज सजन के नाम से , बीती ठण्ड़ी शाम ।।७

अम्मा-अम्मा बोलता , बालक वह नादान ।
अम्मा बातों में लगी , दिए नहीं अब ध्यान ।।८

अम्मा मुझको चाहिए , ऊपर वाला चाँद ।
बेटा पहले भर यहाँ , तू अपना यह नाँद ।।९

मुझको जाना ही नही , अम्मा से अब दूर ।
क्या करना पढ़कर यहाँ , मैं अच्छा लंगूर ।।१०

आओ खेलें हम यहाँ , लुका छुपी का खेल ।
मन्नू की तो आ रही , देखो छुक-छुक रेल ।।११

बापू आज पतंग मैं , दूँगा सबकी काट ।
बहुत लगे हैं बोलने , यह अच्छी है डाट ।।१२

बापू तेरा हाथ मैं , चलूँ पकड़कर संग ।
तू ही आगे भागता , दुनिया है बेरंग ।।१३

गैरो की आने लगे , जब अपनों को याद ।
ऐसा ही होगा सदा , जब ऐसी औलाद ।।१४

मातु-पिता को गैर जब , मान रही औलाद ।
फिर तो पश्चाताप का ,  चखना ही है स्वाद ।।१५

कुछ भी कह लो बात तुम , बच्चे दें ना ध्यान ।
मातु-पिता के अंत में , बस रह जाते प्रान ।।१६

चका-चौंध में हो गये , टुकड़े अब पैंतीस ।
मातु-पिता की मानती , निकली होती खीस ।।१७

चाँद हुआ है मध्य में , देख रहा है चकोर ।
पल-पल आहें भर रहा , देख उसी की ओर ।।१८

१६/११/२०२२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने लगी , कर लो सभी प्रबंध ।।२

सुबह-शाम की धूप का , ले लो सब आनंद ।
पूस-माघ की ठण्ड है , कर लो खिड़की बंद ।।३