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मेरी मनसुनि इच्छा ! बात करने की चाहत है आपसे, दिन

मेरी मनसुनि इच्छा !

बात करने की चाहत है आपसे,
दिनभर की बातों को बतलाओगी क्या?
ख्वाब मेरे हैं,
उसे कुछ पल के लिए सजाओगी क्या?

दुनिया की रस्मों को छोड़कर,
चंद लम्हों के लिए साथ निभाओगे क्या?
मेरी अनसुनी बातों को सुनने के लिए,
अपनी रातों की नींद उड़ाओगी क्या?

जीवन में दर्द ही दर्द है,
कुछ पल के लिए अपना हमदर्द बनाओगे क्या?
सांस अब  कुछ थमने से लगी है,
इतना इंतजार करवाओगी क्या?

माना जिंदगी चार दिन की है,
अपना कीमती वक्त दे पाओगी क्या?
रात तेरे एतबार में कट जाएगी,
सच्चे राह की एहसास कराओगी क्या?

अंत में यही कहूंगा.
कदम कदम पर कांटे ही कांटे हैं,
अपने पांव की धूल बनाओगी क्या?

©Sanjeev Thakur
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