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कुछ पा कर भी लगता है बहुत कुछ छोड़ आया हूँ ज़िन्दगी

कुछ पा कर भी लगता है
बहुत कुछ छोड़ आया हूँ
ज़िन्दगी तो चल पड़ी है 
पर ऐसा लगता है
जैसे साँसे कहीं छोड़ आया हूँ
भरी थाली जो सजी रहती थी घर पर
फिर भी बेस्वाद कह कर जो ठुकरा देता था
आज मुश्किल से रोटियाँ बना पा रहा हूँ
गाँव की पगडंडियों पर यूँ ही भटकने वाला
आज खुद को बंद कमरे में सिमटा रहा हूँ
घर छोड़ आया हूँ

यार-दोस्तो के संग मटरगस्तियाँ 
वो बारिश की कागज की कश्तियाँ
पड़ोस की काकी के ताने
माँ के सामने जो रोज बनाता था बहाने
वो क्रिकेट का बल्ला,वो लोहे का छल्ला
वो मिट्टी का गुल्लक ,वो शीशे की गोलियाँ
वो चूरन की पुड़िया
बस यही तो थी दुनिया
मैं तो अपनी दुनिया छोड़ आया हूँ
घर छोड़ आया हूँ

आज कुछ बन कर भी 
लगता है जैसे मैं ये बनना ही नहीं चाहता था
रोज  स्कूल जाने से मना करने वाला
बेमन से  दफ्तर जा रहा हूँ
अपनों के साथ बिताए पलों को याद कर
मैं रोज बस सिसकियाँ ले रहा हूँ
माँ की लोरी सुन कर ही सो जाता था
आज यहाँ नींद की गोलियाँ खा कर भी
सो नहीं पा रहा हूँ
थोड़ा पा कर
सब लूटा आया हूँ
घर छोड़ आया हूँ---अभिषेक राजहंस घर छोड़ आया हूँ #nojoto #homesickness
कुछ पा कर भी लगता है
बहुत कुछ छोड़ आया हूँ
ज़िन्दगी तो चल पड़ी है 
पर ऐसा लगता है
जैसे साँसे कहीं छोड़ आया हूँ
भरी थाली जो सजी रहती थी घर पर
फिर भी बेस्वाद कह कर जो ठुकरा देता था
आज मुश्किल से रोटियाँ बना पा रहा हूँ
गाँव की पगडंडियों पर यूँ ही भटकने वाला
आज खुद को बंद कमरे में सिमटा रहा हूँ
घर छोड़ आया हूँ

यार-दोस्तो के संग मटरगस्तियाँ 
वो बारिश की कागज की कश्तियाँ
पड़ोस की काकी के ताने
माँ के सामने जो रोज बनाता था बहाने
वो क्रिकेट का बल्ला,वो लोहे का छल्ला
वो मिट्टी का गुल्लक ,वो शीशे की गोलियाँ
वो चूरन की पुड़िया
बस यही तो थी दुनिया
मैं तो अपनी दुनिया छोड़ आया हूँ
घर छोड़ आया हूँ

आज कुछ बन कर भी 
लगता है जैसे मैं ये बनना ही नहीं चाहता था
रोज  स्कूल जाने से मना करने वाला
बेमन से  दफ्तर जा रहा हूँ
अपनों के साथ बिताए पलों को याद कर
मैं रोज बस सिसकियाँ ले रहा हूँ
माँ की लोरी सुन कर ही सो जाता था
आज यहाँ नींद की गोलियाँ खा कर भी
सो नहीं पा रहा हूँ
थोड़ा पा कर
सब लूटा आया हूँ
घर छोड़ आया हूँ---अभिषेक राजहंस घर छोड़ आया हूँ #nojoto #homesickness