अर्सों से बैठा है वो, वहीँ जहाँ पर कोई नहीं आता । कर्मों से बना है वो, किसी को भी वो नहीं भाता । आसरा देता है वो, पर पानी नहीं माँगा कभी; अटल रहता है वो, जब तक साँसे नहीं थमती । उसके तख्तों से, फिर तुम कुछ बनाते हो । टहनियों से सींक भी ले आते हो । उन्होंने बहुत कुछ देखा है, पौध से असीम, और सीमाओं में विलीन, दरख्तों का यही कुछ सलीका है । हमने उन्हीं से ये सब सीखा है । Part 1 of गाथा-ए-दरख़्त Click on #GathaEDarakht for more parts #CalmKaziWrites #HindiPoetry #SimpleLines #DeepThoughts #ClimateChanges #SaveTheEnvironment #LearnFromThem #Trees #सूखापेड़ #सूखा #पेड़ #YQDidi #हिंदी