भाग रहा हर कोई यहाँ दुनिया के गोरख धंधे में, और काल ने फँसा रखा है सबको अपने फंदे में, दिल की बात जुबाँ तक लाना बेअदबी कहलाएगा, हाल बुरा है सबका यारों गुजर रहे सब मंदे में, ज़र्रे भी तब्दील हुए कुछ आलीशान इमारत में, राजनीति ने सिखलाया गुर बहुत जान है चंदे में, लालटेन लेकर निकला था सबको छोर अंधेरे में, आफ़ताब सा चमका नभ में बात तो थी कुछ बंदे में, घुल-मिल जाने की क्षमता का उसने सरल प्रयोग किया, स्वाद बढ़ गया सब्ज़ी का जब मिला टमाटर कंदे में, वक़्त की आड़ी से कटते देखा है लाखों पेड़ यहाँ, अकड़ निकल जाती गाँठों से इतनी ताकत रंदे में, मिलजुलकर रहना गुंजन आनंद यही है जीवन का, तुम भविष्य के प्रहरी रखना बोझ यही निज कंधे में, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #सबको अपने फंदे में#