जिंदा रखेगी तुमको तुम्हारी ज़रूरतें, एहसान फ़रामोश है सारी ज़रूरतें, पूरी नहीं हो पाती ख़्वाहिश कभी यहाँ, हैवान बना देती है सचमुच ज़रूरतें, रक्खा करो ख़्याल सभी का मेरी सुनो, मिलजुल के ही होगी तेरी पूरी ज़रूरतें, सुख-शांति का वरदान मिल चुका है सभी को, सत्कर्म से पूरी करो अपनी ज़रूरतें, मिट जाए ज़िस्म फिर भी न मरती हैं ख़्वाहिशें, भटकाती कितनी योनियों में ये जरूरतें, बीते हुए दुःख दर्द और चिंता भविष्य की, सुख-चैन चुरा लेती है नाहक ज़रूरतें, होती है नींद कीमती गुंजन है बात सच, मन का फितूर समझा हुई कम ज़रूरतें, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #ज़रूरतें#