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पढ़ी है क्या तुमने हर दिल की किताब,मरहम नहीं लगाती

पढ़ी है क्या तुमने
हर दिल की किताब,मरहम नहीं लगाती।
तोड़ देती है जिंदगी के हर तार
एक पढ़ी थी मैंने ऐसी किताब,
उसमें एक पति अपनी ही पत्नी से
कहता है सुनो, मैं उसकी मदद करना चाहता हूं
टूट जाता है हर वो तार
कैसे सहे वो अदना सा आघात
जिसने हिला दी उसके जीवन की
हर दीवार। कैसी सहानुभूति है इस 
प्रेमी की, जो गैरों से होती है
पर अपनों से नहीं।
कैसी झंझावात का पहाड़
गिरा देता है वो अपने ही परिवार पर।।

©Sunita
  #तुमने_तोड़े_जिंदगी_के_तार