" मकां बनाते बनाते,थकते नहीं हैं शहर वाले, हर अनबन पर एक दीवार है, हर मनमुटाव पर एक छत, गलतफहमी के दरवाज़े हैं, ईर्ष्या के आंगन, अनादर के झरोखे हैं, प्रतिशोध के बर्तन, घर की कीमत बहुत है यहां, प्यार,विश्वास,आदर, साझेदारी,समन्वय, सहानुभूति, और जाने क्या क्या, क्यों इतना मोल चुकाऊं,इतनी महंगाई में, क्यों ना बना लूं, मैं भी एक मकां शहर में.... - Author Vivek Sharma #ghar #shahar #yqbaba #yqdidi #yqghar #yqdiary #yqthoughts #makan