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बहुत हुआ यूँ लड़ना झगड़ना चलो अब सुलह कर लेते है ब

बहुत हुआ यूँ लड़ना झगड़ना
चलो अब सुलह कर लेते है
बची हुई इस ज़िंदगी का चलो
मज़ा भी ले लेते है

बहुत हुआ यूँ लड़ना झगड़ना

बीत रही उम्र सारी बड़ रहा
एक तजुर्बा है, 
क्या ? लड़ लड़ के जीने में
भी खुशियों सा कोई मज़ा है

बहुत हुआ यूँ लड़ना झगड़ना

देख दूसरों को न जाने क्यों
सुकूँ इतना सा लगता है, 
क्या ?उनकी तरह जीने का
मज़ा हमको, क्यों? 
नही मिलता है

ढूँढ रहे हम ना जाने क्यों?
 खुशियां गैरों के दरवाजे पर 
नज़र उठा कर न देखा हमने
बंद पड़े अपने मकानों पर

बहुत हुआ यूँ लड़ना झगड़ना

©पथिक..
  #ज़िंदगी_के_किस्से