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चिंता बनाम चिता हर जीवित होता यहाँ, जलकर चिंता रा

चिंता बनाम चिता

हर जीवित होता यहाँ, जलकर चिंता राख।
जाने कैसा मोह है,      बचा रहा है साख।।

चिता जलाती देह को,     छूटे जिसकी श्वांस।
सत्य यही बस राज है, क्यों झुठलाता आस।। 

राजेश श्रीवास्तव राज़

©Rajesh Srivastava
  #Lohri  करन सिंह परिहार संजीव निगम अनाम Birbhadra Kumari Parvez