Nojoto: Largest Storytelling Platform
karan9304170019154
  • 35Stories
  • 98Followers
  • 535Love
    7.4KViews

करन सिंह परिहार

गीतकार

  • Popular
  • Latest
  • Repost
  • Video
66aa9d66afe3c3f332c51ddb51c67aaa

करन सिंह परिहार

सभी को करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं
-----------
देखती छलनी के उस पार, लिए मृदु कोमल सी मुस्कान।
नयन बिच नीरव प्रेम अपार,नेह उर सरिता सिन्धु समान।
देखकर  तन्वंगी  कटि  चाल, चांद  भी  शर्माया  है आज।
प्रिये  का  देख  प्रेम  शृंगार  , हुआ  मैं  तन मन से बेजान।
*******

©करन सिंह परिहार
  #happykarwachauth
66aa9d66afe3c3f332c51ddb51c67aaa

करन सिंह परिहार

बेशक दीप जलाओ घर में अंधियारा हरने की खातिर ।
पर दीपक की लौ से पूछो कितने शलभ जलाए तुमने।

©करन सिंह परिहार
  प्रकाश

प्रकाश #कविता

66aa9d66afe3c3f332c51ddb51c67aaa

करन सिंह परिहार

प्यासे होंठों से पूछो पानी की कीमत।
आँखों से पूछो सुरमेदानी की कीमत।
धोखा खाये हुए प्यार से जाकर पूछो।
यादों  में  बर्बाद  जवानी  की  कीमत।
*****

©करन सिंह परिहार
  #Sukha
66aa9d66afe3c3f332c51ddb51c67aaa

करन सिंह परिहार

अंधियारा नित बाढता, बौना हुआ उजास।
राहु सूर्य को खा रहा, शशि करता परिहास।
शशि करता परिहास, मौन हैं सभी दिशाएं।
जुगनू मिलकर आज, दीप को ज्ञान सिखाएं।
कहें करन परिहार, कुमति ने सबको मारा।
उजियारे को छोड़, मनुज ढूंढे अंधियारा।
******

©करन सिंह परिहार
  #जुगनू
66aa9d66afe3c3f332c51ddb51c67aaa

करन सिंह परिहार


पंडितों ने शंख फूँके, मोमिनों ने दी अजानें,
भोर ने स्वच्छंद होकर, तब तमस पर विजय पाई।
राजनैतिक मुट्ठियों में कैद इल्मों के उजाले।
व्यर्थ आपस में भिड़े, हैं देश में मस्जिद-शिवाले।

कर्धनी में खोंसकर अभिमान के घातक तमंचे,
कारतूसें मजहबी ले साधना इतरा रही है।
जाति धर्मों में उलझकर हो गयी है चेतना जड़,
व्यग्र मन की भ्रांतियों पर दंभता मँड़रा रही है।
आस्था से जब नमाजें, आरती का दीप बालें,
तब विविधता में दिखाई लौ पड़ेगी एकता की।
चख रहे उपवास, रोज़े ही स्वयं छिप कर निवाले,
व्यर्थ आपस में भिड़े हैं देश में मस्जिद-शिवाले।

द्वंद के उठते भँवर में भावनाएं अग्नि बनकर,
जातिवादी आरियों को धार देने में तुली हैं।
दुधमुँहे मस्तिष्क में विध्वंसता का बीज बोकर,
सांप्रदायिक नीतियाँ अंगार देने में तुली हैं।
बेड़ियों ने जब पिघलकर क्रांतियों के पेड़ रोपे,
तब कहीं घुटती हवा में श्वास ने उन्माद पाया।
किन्तु अब वातावरण में लग चुके हैं मकड़जाले।
व्यर्थ आपस में भिड़े हैं देश में मस्जिद शिवाले।

*********

©करन सिंह परिहार
  #मतभेद
66aa9d66afe3c3f332c51ddb51c67aaa

करन सिंह परिहार


जगत के प्रेम का अभिसार हूँ मैं। 
नदी  हूँ  या  उदधि  परिवार हूँ मैं।
सिमटती जा रही मेरी रवानी,
व्यथाओं से भरी मेरी कहानी।
जनम से मृत्यु तक उद्गार हूँ मैं,
नदी हूं या उदधि परिवार हूँ मैं।
गुजरती हूँ सदा हिम आँगनों से।
पहाड़ों  से  घिरे  निर्जन वनों से।
फ़सल की उम्र का आधार हूँ मैं,
नदी हूं या उदधि परिवार हूँ मैं।
******

©करन सिंह परिहार
  #नदी
66aa9d66afe3c3f332c51ddb51c67aaa

करन सिंह परिहार

याद में भाई बहन तुम्हारी, रोती है अँगना।
रोती है अँगना।

यादें सब पीहर की लेकर, मता के दिल में गम देकर।
आयी थी मैं खुशियाँ पाने, साजन के घर सपने लेकर।
लेकिन इस छलिए घर की मैं, समझ सकी न रँगना।
समझ सकी न रँगना।
याद------------------(1)

सोंचा क्या था क्या घर पाया, पैसा लालच किया पराया।
सास ससुर की बातें छोड़ो, पति ने भी मुझको तड़पाया।
ननद रोज है ताने देती, लायी क्या गहना।
लायी क्या गहना।
याद------------------(2)

रक्षाबंधन पर्व ये' पावन, आया खुशियाँ ले मनभावन।
राखी के इस प्रेम सूत से, झूम उठा हर घर में सावन।
लेकिन मेरे भाग्य में' केवल, आँसू का बहना।
आँसू का बहना।
याद-----------------(3)

आज  देश  में  हाहाकारी ,  बढे  दुष्ट  खल अत्याचारी।
जगह जगह में फैला मातम, चीख रही चिथडों में नारी।
रोज दहेजों में जलती हैं, बेटी औ बहना।
बेटी औ बहना।
याद -------------------(4)

कहें करन ऐ  दुनियावालो ,  मात  बहन की लाज बचालो।
कनक चमक में क्यों भूले हो, अपना भी कुछ कर्म बनालो।
प्रेम भाव की पढकर पोथी, बंद करो लड़ना।
बंद करो लड़ना।
याद----------------(5)
************

©करन सिंह परिहार
  #rakshabandhan
66aa9d66afe3c3f332c51ddb51c67aaa

करन सिंह परिहार

राजपथों के ढोंगी नायक चंदन चाहे जितना मल लो।
सत्ता हथियाने की खातिर चाहे जितनी चालें चल लो।
पर मैं अपनी रचनाओं से तुम्हें पराजित सदा करूंगा।
और पसीने से लथपथ हर माथे के मैं गले लगूंगा।

जो  खेतों  के  संन्यासी हैं  सूर्य  ताप से नित मिलते हैं।
फटी कमीजों में अपने जो ओस बूंद के कण सिलते हैं।
जिसके साथ हमेशा रहता धुंध कुहासे का अपनापन।
जिसके आगे झूम - झूम कर मोर नित्य करते हैं नर्तन।
मैं  उन  मेहनतकश  अंगों में फूलों का मकरन्द भरूंगा।
और पसीने की-------------------------------------(१)

जाति-पांति का जहर घोलकर तुमने अपने भाग्य संवारे।
और  तुम्हारी  कूटनीति  से  जगह -जगह  दहके  अंगारे।
धर्मवाद  की  दग्ध चिता  मानवता को झोंका तुमने।
आम - जनों  को  मिलने वाले अधिकारों को रोंका तुमने।
पर  मैं  अपने  हर गीतों  में  तुम्हें  धरा  का  बोझ कहूंगा।
और पसीने-------------------------------------------(२)

जिन  हाथों  की  गीली  मेंहदी  सीमाओं पर हुई निछावर।
भरी  जवानी  विलग  हो  गया  जिन  पैरों से नेह महावर ।
जिनकी  कच्ची  उम्र  जवानी  के दर्पण को त्याग चुकी है।
और नींद जिन-जिन आंखों से अगणित रातें जाग चुकी है।
उन  आंखों  से  बहते  आंसू  का  जीवन  संग्राम  लिखूंगा।
और पसीने------------------------------------------(३)

©करन सिंह परिहार
  #राजपथों के ढोंगी नायक

#राजपथों के ढोंगी नायक #कविता

66aa9d66afe3c3f332c51ddb51c67aaa

करन सिंह परिहार

सांसों के रुकने  से  पहले,  मानवता  की पृष्ठभूमि पर।
निर्धनता से आहत मन की, सदा बिलखती पीर लिखूँगा ।।

कर्तव्यों पर मार कुल्हाड़ी , मठाधीश सब  बुद्ध हो गये।
और चीथडों की रोटी के, ग्रास निगल कर शुद्ध हो गये।
सहकारी गोदाम समिति में, खाद्यान्न सड़ने से पहले । 
हँसिया खुरपी की मूठों पर, भूखों की तकदीर लिखूँगा । 
सांसों ------ - - - - - - - - - - - - - - - - - - - ( 1 ) 

स्वाहा होते रहे मृत्यु तक,  अग्नि कुण्ड के सातों फेरे ।
अवशोषण के बंधक बनकर , आशाओं के पडे सवेरे ।
झोपड़ियों में व्यथित हृदय की, धडकन के रुकने से पहले ।
ग्राम्य क्षेत्र पर ऊँच-नीच की, खींची हुई लकीर लिखूँगा ।
सांसों - - - - - - - - - - - - - - - - - - - ( 2 ) 

दस्तावेजों की फाइल में, कैद पडी हर कृषक योजना।
मनरेगा के चरण पकड़कर, चीख रही है श्रमिक वेदना।
ठेकेदारों के प्रांगण में , बालू  के  डम्पिंग  से पहले।
आवासों की ईंट ईंट पर, बिकता हुआ वज़ीर लिखूँगा ।
सांसों - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - ( 3 ) 
- - - - - - - - - - - - - - - - - 
रचनाकार - करन सिंह परिहार 
ग्राम - पोस्ट - पिण्डारन 
जिला - बाँदा ( उत्तर प्रदेश ) 
सम्पर्क - 9619070195

©करन सिंह परिहार #विलखती पीड़ा संवेदिता "सायबा" Amit Pandey सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र) Shubham Gupta  Anjali Maurya

#विलखती पीड़ा संवेदिता "सायबा" Amit Pandey सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र) Shubham Gupta Anjali Maurya

66aa9d66afe3c3f332c51ddb51c67aaa

करन सिंह परिहार

सुन कर चीखें अबलाओं की,मैं व्याकुल होकर सिहर गया।
फिर हृदय कंपनों की गति का,आवेग तीव्र हो बिखर गया।

यह राज भोग का महा ज्वार,कंचन महलों का विष अपार।
सत्ता की गलियों का सियार , बस नोच रहा तन का शृँगार।
क्या  मानवता  का  यही  सार ,जो  हुई  आबरू  तार  तार।
नारी जो  जीवन  का  अधार , कर  रही  धरा  पर  चीत्कार।
लेकिन  गूँगे  , अंधे   शासक ,  झूठे  उद्गार  दिखाते   हैं।
कुर्सी की लालच में बँधकर,हो मौन पलक  झपकाते हैं।
शकुनी के फेंके पासों से , मानवता में  विष  उतर  गया।
फिर से द्वापर का वही दृश्य,मेरी आँखों  में   पसर  गया।
सुनकर चीखें--------(1)

तम् के घर में बंधक प्रकाश , हो रहा संस्कृति का विनाश।
चहुँ ओर आसुरी अट्टहास , मृदु संस्कारों का नित्य ह्रास।
सिंहासन का चिर भवविलास,कर रहा भूमिजा को उदास।
लिप्साओं का दृढ  नागपाश,गल  में करता अवरुद्ध  श्वास।
लेकिन विधर्मियों के वंशज , तांडव का जश्न मनाते हैं।
कर चीर हरण द्रोपदियों का,फिर नग्न नृत्य करवाते हैं।
ऐसे कुकृत्य अपराधों से,  लज्जा  का  घूँघट उघर गया।
फिर धैर्य त्याग करके आँसू, सूखी आँखों में पजर गया।
सुनकर चीखें--------(2)
******

©करन सिंह परिहार #मणिपुर संवेदिता "सायबा" Kumar Shaurya सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र)

#मणिपुर संवेदिता "सायबा" Kumar Shaurya सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र)

loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile