ज़िन्दगी किसी भिक्षुक का झोला है
जिसे वो हर मोड़ पर एक दफा खोला है
झोले में रखा वो पांच सौ का नोट है अस्पताल
दिन गुज़र जाता भिक्षुक का
इधर उधर भटकते भटकते
गिनती के सिक्के मिलते उसे हर दिन
जिसे वो गिन गिन कर खर्च करता
फिर कोई एक दिन अचानक उसे #Hospital#kclongforms