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हीर छन्द आप मिलें , शूल चुभे , मुझे खार से लगे ।

हीर छन्द

आप मिलें , शूल चुभे , मुझे खार से लगे ।
और लगी , बात बुरी ,  खार जो जुबा उगे ।।
प्यार मिटा , स्वार्थ जगा , रीति जगत की बनी ।
मातु तुम्हीं , भूल गयी , मुझे हो तुम्हीं जनी ।।

आस नही , पास कही , सुनों खास अब नही ।
दूर चलो , और चलो , मिलाप जो मन नही ।।
डोर वही , छूट गयी , जहाँ आप हम हुए ।
करूँ विनय , मातु तनय , दूर नही हम हुए ।।

२६/०४/२०२५    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR हीर छन्द

आप मिलें , शूल चुभे , मुझे खार से लगे ।
और लगी , बात बुरी ,  खार जो जुबा उगे ।।
प्यार मिटा , स्वार्थ जगा , रीति जगत की बनी ।
मातु तुम्हीं , भूल गयी , मुझे हो तुम्हीं जनी ।।

आस नही , पास कही , सुनों खास अब नही ।
हीर छन्द

आप मिलें , शूल चुभे , मुझे खार से लगे ।
और लगी , बात बुरी ,  खार जो जुबा उगे ।।
प्यार मिटा , स्वार्थ जगा , रीति जगत की बनी ।
मातु तुम्हीं , भूल गयी , मुझे हो तुम्हीं जनी ।।

आस नही , पास कही , सुनों खास अब नही ।
दूर चलो , और चलो , मिलाप जो मन नही ।।
डोर वही , छूट गयी , जहाँ आप हम हुए ।
करूँ विनय , मातु तनय , दूर नही हम हुए ।।

२६/०४/२०२५    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR हीर छन्द

आप मिलें , शूल चुभे , मुझे खार से लगे ।
और लगी , बात बुरी ,  खार जो जुबा उगे ।।
प्यार मिटा , स्वार्थ जगा , रीति जगत की बनी ।
मातु तुम्हीं , भूल गयी , मुझे हो तुम्हीं जनी ।।

आस नही , पास कही , सुनों खास अब नही ।