कल फुर्सत थी,तो कुछ काम चाहिए था, आज काम है तो दो पल आराम ढूंढते हैं, कल उनके साथ माँ-बाप और सारे बच्चे थे, पर घर की जमीन और छत,दोनों ही कच्चे थे। चाहा सबने,थोड़े पैसे,और सुख-सुविधा थोड़ी, मनचाहा पाने के लिए अपनी-अपनी इच्छा जोड़ी, एक पलड़े से समय और साथ उठाया, कुछ पैसे,थोड़ी सुख-सुविधा रख दी। आज छोटे-मोटे काम से है आराम, नर्म बिछावन पर अकेले नींद हराम, माँ-बाप,बच्चे सब हो गए दूर, भागता मन थककर हो गया है चूर। प्रकृति के तराजू का अपना है संतुलन, घटता है कहीं कुछ होता तभी संवर्धन, जिसने कुछ खोया उसीने कुछ पाया, चाहतों के हिसाब से सबने मूल्य चुकाया। कल फुर्सत थी,तो कुछ काम चाहिए था, आज काम है तो दो पल आराम ढूंढते हैं, कल उनके साथ माँ-बाप और सारे बच्चे थे, पर घर की जमीन और छत,दोनों ही कच्चे थे। चाहा सबने,थोड़े पैसे,और सुख-सुविधा थोड़ी, मनचाहा पाने के लिए अपनी-अपनी इच्छा जोड़ी, एक पलड़े से समय और साथ उठाया,